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रविवार, 1 अगस्त 2021

"राशी: हमर मुङ्गेरी लाल के सपना" साउन के गर्मी सँ चानी फाटल जाइ छै, पोखैर के पाइन के उपरका हिस्सा सेहो गरमा गेल छै, निचा के पाइन मे मात्रे कने ठण्डा.. एक त गरमी के छुट्टी उपर सँ ६ क्लास पहुँचते मिर्चैया पढवला विद्यार्थी, भैर दिन पोखैर मे नङ्गे उमकैत रहु कि महारपर सँ उण्टाफान फनैत रहु कोइ किछ नै कहवला.. आब ने बच्चोसभके लाज हुअ लगलैय हमसभ त सात-आठ क्लास तक नङ्गटे कुदैत रहियै पोखैर मे, भैर दिन बडका टोक(गाछी), दह आ मैनाघटी(मरघटिया) मे टण्डेली आ गर्मी लागल कि पोखैर मे छपाक.. हमर गाम मतलेसर, मतलव पढल-लिखल के भाषा मे मथिलेश्वर आ किछ ठेठी पण्डितसभ के भाषा मे मिथिलेश्वर.. एक त बज्र देहात उपर सँ बरसात महिना मे टापुजका, गाम सँ बाहर या फेर मिर्चैया हटियातक जाइवला रस्ता कतबो ठीक कऽ दौ, बर्खा अबैते देरी फेर सँ तीन-चाइर ठाम टुइट गेल.. आ बस! तब या त बडका खाँइह्र सभ हेल कऽ जाउ या दुर दुर सँ आइरे आइरे । कहुँ बस पकड के हुए त दु घण्टा पैदल, स्कुल जाइ के लेल घण्टाभर चलब त तैयो कमे दुख के बात.. हमरा जनैत गाम मे एकोटा टायर गाडी नै रहै, कटही गडिए सभके बेरा मौका के पार लगबै ओहो सुख्खा मौसमे टा मे.. गदहवावला भरोसी अंकल आ मिर्चैया के खोनमा डाग्दर कहियो काल गर्दा उडबैत राजदुत मोटरसाइकल लऽ कऽ गाम दऽ कऽ जाई सेहे नै त सालो साल तक मोटरसाइकल के कोनो दरस नै, हाँ प्रधान बाबा के घर बनै त बालु, सिमेन्ट आ सरीं लऽ कऽ ट्रेक्टर बराबर अबै.. त कि, मोटरसाइकल के पछाडी पूरा गाम के धियापुता दौड कऽ सीमान कटा लै त ट्रेक्टर कोनो अछुते रहितै, आधा लटकल रहल किछ पछाडी दौडैत रहल आ किछ थाइक कऽ ट्रेक्टर के जाइत देखैत रहल, सभ ट्रेक्टर के ट्रली मे लिखल रहै छलै"लटकले बेटा त गेले बेटा" .. त एकर मतलव कि? लोक बहादुरी देखेनाई छोइड दै? खलासी कतबो करची लऽ कऽ मारैत रहौ धनसन! एक त महिनो मे कहियो अबै छै ओहो मुश्किले सँ आगा पडल। पोखैर मे उमकैत उमकैत आँइख लाल भऽ गेल रहै सभ छौंडा के, दुपहर मे भुखे पेट मे बिलाइर कुदै से अलग तखने घाटपर ठाड एकटा छौंडा बाजल जे "टरेक्टर" .. आव देखि नै ताउ सभ उमकनाई छोइड कऽ कुदलै महारपर.. दुर सँ ट्रेक्टरके आवाज सुइन कऽ खुशी सभ अधे छिधहे कपडा पहिर कऽ दौड लगलै, जाबे खलासी रोकै रोकै ताबे सभ ट्रलीपर, गामघर के खदियावला रस्ता ड्राइभर कते स्पीड करतै? बहुतदिन के अशियासल धियापुता रतनपुरतक चहरले रैह गेलै, धार मे खरकए सँ पहिने ड्राइभर सभके उताइर देलकै लेकिन हम, ढाल बहादुर, बिनोद आ राजिब मिर्चैया मे पढै छियै कैह कऽ चहरले रैह गेलियै.. तेकर बदला इ जे स्पीड बढा कऽ उठा उठा पटकै ट्रली के ड्राइभर, जखन पीडा असहीय भऽ गेलै त हम धार के बालुपर कुइद गेलियै, हमरा देख कऽ छौंडा सभके हिम्मत भेलै सभ कुइद गेलै पाछा सँ, भैर मन ड्राइभर के गाइह्र पैढ कऽ हम सभ पिपरा दऽ कऽ गाम घुमलियै, तहिया पिपरा आ मतलेसर के बीच मे सडक नै रहै, एकटा खुरपेडिया रस्ता रहै जे प्राय: साल मे एकबेर पिपरा मे दुर्गा मेला देखय लेल हमर गाम के लोकसभ प्रयोग करै, से हमरा सभके देखल रहे.. बाबू के गोजी सँ चोराएल पँच टकहि ओहि समय मे चाइर आदमी के एक गिलास कऽ मुरही आ चाईर टा कऽ कचरी जल खै के लेल काफी रहै.. आ ओ सुवदगर जेकर कोनो सानी नै, याद करु त एखनो मँह मे पाइन आइब जाइ..आब जा कऽ सबके कपडापर हमर नजर गेल, ढाल बहादुर गमछे लपेट कऽ चैल आएल रहै, आ बिनोद डोरीया पेण्ट आ गञ्जी, राजिब सियौवा हाफपैण्ट आ सोना के गञ्जी, अप्पन त नहिये कहब, हाँ चप्पल मात्रे हमरे पैर मे रहै । गाम मे कतौ महिला सभ मे झगडा बझल रहै से चारुकात सँ लोकसभ दौड दौड कऽ देख जाइत रहै तखने कारी फ्राक मे उजर डाँइह्रवला कपडा पहिरने, घुरमल घुरमल केशवाली हमर सँगतुरिया छौंडी के सेहो नङ्गे पएर अगाडी सँ दौडैत देखलियै, हमरा बुझाएल जे हम चिन्है छियै, हमहुँ पाछा पाछा दौडऽ लागलियै.. हमर दौडनाइ हमर सँगी सभ के लेल अप्रत्याशित रहै ओ सभ एक दोसर के तैकते रैह गेलै.. हमरा पाछा दौडैत देख कऽ दोसर लडकी सभके सेहो उटपटाङ्ग बुझेलै ओ सभ बुझलकै जे हम ओकरसभके साथी के पकडए चाहै छियै, ओ सभ राशी राशी कहिक हल्ला करैय लगलै । हम आब आओर खुशी भऽ गेल रहि, कैला त हम राशीए बुइझ कऽ ओ छौंडी के पछुआबैत रहियै । तखने राशी पाछा घुरल, हमरा देखि कऽ चिन्ह गेलै..आ मुस्काए लगलै.. दुनु गोटे दौडते रहिए ओ इशरे पुछलक जे एम्हर कत? आ इ कि पहिरने छि? अपन कपडा देख कऽ लाज लाइग गेल.. गमछा लपेटने आ उपर सँ गञ्जी.. पैण्ट त हरबर मे पोखैरे पर छुइट गेल रहै । हम कहलियै "आहाँ एम्हर?" राशी बडका हवेली के देखबैत कहलक जे हमर मामा के घर छियै । ताबत दौडैत दौडैत हमरो आ राशी के साथीसभ सेहो चैल ऐलै । (राशी या कहु गुडिया, उज्जर धबधब, घुरमल घुरमल केश, कारी बडका बड्का आँईख, आ गोल-मोल देवीजका सुन्दर मुँह..हमरे सँगे मिर्चैया मे पढैत रहै माध्यमिक स्कुल मे, ओकर घर हमर गाम सँ कने दुर के गाम मे रहै लेकिन मिर्चैया मे सेहो दोहटा । सम्पन्न घराना के भेला के कारण मास्टरसभ सेहो इज्जते सँ बात करै, एना नै कि हमरे सभ जका रे छौंडा पढ, मारैत मारैत..! सन के शब्द कह के कोनो मास्टरसभ हिम्मत करै.. किन्नहु नै! आ लडका सभ के त हिम्मत फुस्स! ६ क्लास के बालसुलभ बुद्धि आ ताहु मे बज्र देहात के गवार, कत हमसभ कत ओ ! ओहि समय मे मिर्चैया पढवला विद्यार्थी सभमे अप्पन नाम सँगे हमर लभर छि कैह कऽ बाँस मे "ए+आर" लिख के रहै । सभ अपना हिसाब सँ लिखै लेकिन हमरा कहियो हिम्मते नै हुए.. हमर एकटा साथी रहे रमण, सार नामि खच्चड, सभ के कहैत जे हमर लभरे छि.. लेकिन हमर पैटेण्ट दोस, सभदिन पुछैत जे के हौ तोहर लभर? हम केकरा कैहतियै, एक दु टा पहरनी सभ रहै बड्ड सुन्नैर आ सुचा गोर.. हमरा बड्ड निक लागे लेकिन अप्पन कारी मुँह देख कऽ मन मसोस कऽ रैह जाइ । कहियोकाल सपना मे उडि त मन हुए जे कहुँ बडका आदमी बइन गेलियै जीनगी मे त राशी सँ वियाह कर के सेहन्ता जरुर रहे, मुदा ओ मुँगेरीलाल के हसिन सपने जका सपने छल । राशी के मम्मी के एकदिन हम अपना मम्मी सँ बतियाइत देखने रहियै, संभवत: पारिवारिक मित्र रहै ओ दुनु तहिया सँ कतेको बेर राशी के सपना मे सँगे उडैत देखने रहियै । रमण एकदिन बड्ड निहोरा केलक जे कह तोहर "लभर" के हौ? सेहन्ता त रहबे करे, तैयो हिम्मत नै हुए.. ओहिदिन हिम्मत कऽ कऽ कहलियै "राशी".. ओ छौंडा मारलक एक फाइट हम त भौचक्के रैह गेलियै जे भेलै कि? ताबे उ कहलक "रे सार उ हमर बहिन है, मसियौत" आ डरे हम भाग लगलियै त उ रेवाड लागल.. रेवाडैत रेवाडैत फिल्डपर पहुँच गेल, हम उल्टा मुँहे भगैत रहियै, कहलियै "तु सार कहिए देले त, बियाह कऽ दे" उल्टा दिस भगैत रहियै से नै देखलियै जे छौंडीसभके ग्रुप जा रहल छै आ धरफडा क एकटा छौंडी के सल पकडनहि खैस परलियै.. छौंडी नै ओ त राशी छल, ओकरे सल पकडा गेल रहै, रमण सेहो ठिठैक गेलै, हम स्तब्ध! सभ देख लगलै जे भेलै कि? आसपास के सभ विद्यार्थी जम्मा भऽ गेलै। राशी के सल हम छोइड देलियै आ खसल किताब सभ ऊठा कऽ देब लगलियै, हमरा बुझ मे कोनो भङ्गठा नै रहल जे राशी हमर बात सुइन लेने छलै । राशी बजलिह "जाउ आहाँसभ किछो नै भेलैय" धिरे धिरे सभ विद्यार्थी चैल गेलै तखनतक हम लाजे मुरी गोतनहि रहि.. राशी फेर सँ " लाज नै लगैय आहाँसभ के, हमरा मजाक बना रहल छि?" रमण हमरा बाज स पहिने कहलकै "बहिन माफ कऽ दे, आब एहन गल्ति नै हेतौ, मौसी के नै कहि है" हम माथ उपर कऽ कऽ राशी सँ माफी चाहैत रहियै ताबे राशी दाँततर अप्पन ठोर दबौने, मुस्काइत हमरा दिस तकैत चैल गेलै । ) राशी के साथीसभ राशी के घीच कऽ लजाइत रहै कि राशी हमरा पुछलक "घर नै जेबै?" हम कहलियै "इ गाम आ हमर गाम दुनु एक्केटा छै, आहाँ हमर घर चलु" "ठीक छै कहियो आएब" कहि कऽ हँसैत राशी चैल गेलै आ फेर सँ हम आ हमर मुङ्गेरी लालक सपना... इ सब घटना हमर साथीसभ के आगा भेल रहै, बात तेहन किछ भेबो नै केलै आ भैर गाम एक कान दु कान मैदान भऽ गेलै बात.. जेना साँचे उ हमर प्रेमिका रहै। हाँ, ओत सँ गाम आबऽ तक हमरा बुझाइ जे खुशी सँ गाछपर चढु कि भैर दिन पोखैर मे उम्कैत रहु । भैर रस्ता हमर साथीसभ जिस्काबैत रैह गेल, केओ पुछलकै जे के है? दोसर लाल बुझ्झक्कड के जवाफ जे एकर "लभर" है, दुनु के कते दिन सँ बजाभुकी है, इ है, उ है .. जेकरा जे मन भेलै से बजलै लेकिन हम त हसिन सपना मे बौआएल रैह गेली किछ दिन वाद हमर गाम मे जितबाहन भगवान के मेला रहै, राशी अप्पन मामा गाम सँ मेला देख आएल रहै, हमर साथी सभके आगा पाछा करऽ के मौका भेट गेलै, आ हम बाबू के डरे दुरे सँ देखैत रैह गेलियै, वो हँसैत आ लजाईत रैह गेलै । मुदा ओहि दिन सँ एकटा डोर जुइट गेल रहै जे ओ पूरा साल हमरा सभके बाइन्ह कऽ रखने रहल । हाँ बात त कहियो काल हाँ/ नै मे रैह गेलै लेकिन राशी के हँसि आ लजाऽ कऽ देखब मे कोनो कमी नै ... वाद मे हमर ड्याडी के सरुवा हिमाल सँ मधेश मे भऽ गेलै आ हमर स्कुल सेहो परिवर्तन भऽ गेल आ सँगे सँग गाम मे रह के सुविधा सेहो । एते साल वाद एहि घटना के याद कएला सँ बुझाइय नै हम बड्का आदमी बइन सकलियै नै त "मुँगेरी लाल के हसिन सपने" पूरा भेल...जिनगीक डगर बस खिचने जा रहल अछि कोनो गन्तव्यहिन यात्राक दिस